Last updated on सितम्बर 6th, 2023
डाइबीटीज़ एक एसी अवस्था है जिसमें शरीर में इंसुलिन का उत्पादन काफ़ी कम या ना के बराबर होता है। इससे शरीर में ब्लड शुगर लेवल की मात्रा बढ़ जाती है जिससे शरीर में कई जटिलताऐं बढ़ जाती है। डाईबिटीज़ मुख्यतया तीन प्रकार की होती है – टाइप 1, टाइप 2 व जेस्टेशनल डाईबिटीज़ / गर्भावधि डायबिटीज। जेस्टेशनल डाईबिटीज़ में गर्भावस्था के दौरान शरीर में शुगर लेवल बढ़ जाते हैं जो माँ व शिशु दोनों के लिए नुकसानदायक होता है।

गर्भावस्था/ गर्भकालीन डायबिटीज क्या होता है?
गर्भकालीन मधुमेह एक प्रकार का मधुमेह है जो गर्भावस्था के दौरान उन महिलाओं में विकसित हो सकता है जिन्हें पहले से मधुमेह नहीं है।
अन्य प्रकार के मधुमेह की तरह, गर्भकालीन मधुमेह में भी कोशिकाएं शर्करा या ग्लूकोस का उपयोग ठीक से नहीं कर पाती। गर्भकालीन मधुमेह के कारण शरीर में शर्करा का स्तर या शुगर लेवल बढ़ जाता है जो माँ व शिशु दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
गर्भावधि मधुमेह के दो वर्ग class A1 व A2 होते हैं। A1 प्रकार को आहार और व्यायाम के माध्यम से मैनेज किया जा सकता हैं वहीं A2 वर्ग वाली महिलाओं को इंसुलिन या अन्य दवाएं लेने की आवश्यकता होती है।
यदि आपको गर्भावस्था के दौरान गर्भावधि मधुमेह या जेस्टेशनल डाइबीटीज़ है, तो आमतौर पर आपका रक्त शर्करा स्तर प्रसव (delivery) के तुरंत बाद अपने सामान्य स्तर पर लौट आता है। लेकिन एक बार गर्भावधि मधुमेह होने के बाद आपको टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा अधिक हो जाता है। इसलिए समय-समय पर ब्लड शुगर लेवल की जाँच करवाते रहें।

प्रेगनेंसी/गर्भावस्था में नार्मल ब्लड शुगर लेवल कितना होना चाहिए?
अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन के अनुसार गर्भवती महिलाओं में निम्नलिखित शुगर लेवेल्स को सामान्य माना जाता है:
- भोजन से पहले: 95 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
- भोजन के एक घंटे बाद: 140 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
- भोजन के दो घंटे बाद: 120 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
प्रेगनेंसी/गर्भावधि में शुगर के लक्षण
गर्भावधि मधुमेह से पीड़ित महिलाओं में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते हैं। अधिकांश मामलों में इसकी जानकारी प्रेगनेंसी के दौरान किए जाने वाली नियमित जाँचों से पता चलती है। लेकिन कुछ साधारण लक्षण हो सकते हैं जैसे:
- ज़्यादा प्यास लगना
- आपकी नियमित खुराक से ज़्यादा भूख लगना
- सामान्य से अधिक बार पेशाब जाना
जेस्टेशनल डायबिटीज/ गर्भकालीन डायबिटीज का निदान कैसे किया जाता है?
गर्भकालीन मधुमेह आमतौर पर गर्भावस्था के बाद के दिनों में होता है। डॉक्टर आपको 24 और 28 सप्ताह के बीच, या यदि आपको इसके होने की संभावना अधिक है तो उससे पहले जाँच के लिए सुझाव दे सकता है।
इसके लिए आपका ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट किया जाता है। इसके अंतर्गत आपको एक मीठे पेय में 50 ग्राम ग्लूकोज पिलाया जाता है, जिससे आपका ब्लड शुगर बढ़ जाता है। एक घंटे बाद, आपकी जाँच की जाती है कि क्या आपका शरीर उस ग्लुकोज़ को मैनेज कर लेता है और आपका शुगर लेवल सामान्य हो गया। यदि आपकी रक्त शर्करा एक निश्चित स्तर से अधिक है, तो आपका फ़िर से 3 घंटे वाला ओरल ग्लूकोज टोलेरेन्स टेस्ट किया जाता है जिसमें 100 ग्राम ग्लुकोज़ पेय पीने के 3 घंटे बाद आपके शुगर लेवल की जाँच की जाती है। इसके अलावा डॉक्टर12 घंटे उपवास के बाद 75 ग्राम ग्लूकोज पेय और 2 घंटे का रक्त ग्लूकोज परीक्षण भी करवा सकता है।
यदि आप हाई रिस्क में हैं, लेकिन आपके जाँचों के परिणाम सामान्य हैं, तो डॉक्टर आपकी गर्भावस्था में बाद के महीनों में फिर से सुनिश्चित करने के लिए आपकी जाँच करवा सकता है।
गर्भावस्था में शुगर के कारण
गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डाइबीटीज़ तब होता है जब आपका शरीर गर्भावस्था के दौरान आवश्यक अतिरिक्त इंसुलिन नहीं बना पाता है। इंसुलिन, आपके अग्न्याशय में बना एक हार्मोन है जो ग्लुकोज़ का उपयोग कर के शरीर को ऊर्जा देता हैं और आपके रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
गर्भावस्था के दौरान, आपका शरीर कई विशेष हार्मोन बनाने के साथ अन्य परिवर्तनों से गुजरता है, जैसे वजन बढ़ना आदि।
इन परिवर्तनों के कारण, आपके शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन का अच्छी तरह से उपयोग नहीं कर पाती। इस स्थिति को इंसुलिन रेज़िसटेन्स कहा जाता है। गर्भावस्था के बाद के दिनों में अक्सर सभी गर्भवती महिलाओं में कुछ इंसुलिन रेज़िसटेन्स होता है। ज़्यादातर गर्भवती महिलाओं के शरीर में इंसुलिन रेज़िसटेन्स को दूर करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन होता है लेकिन कुछ महिलाओं में इसकी मात्रा ज़रूरत के अनुसार नहीं बन पाती। इन महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह या जेस्टेशनल डाईबिटीज़ हो जाता है।
अधिक वज़न होना या मोटापा भी गर्भावधि मधुमेह का एक बड़ा कारण होता है। अधिक वज़न वाली या मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में गर्भवती होने से पहले ही इंसुलिन रेज़िसटेन्स हो सकता है जो बाद में जेस्टेशनल डाईबिटीज़ का कारण बनता है।
इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान बहुत ज़्यादा वज़न बढ़ना भी इसका एक कारण हो सकता है।
मधुमेह या डाईबिटीज़ की फैमिली हिस्ट्री होने पर भी महिलाओं में जेनेटिक कारणों से इसकी संभावना बढ़ सकती है।
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गर्भकालीन/गर्भावस्था मधुमेह का इलाज कैसे करे?
गर्भावधि मधुमेह के लिए उपचार आप अपने गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डाईबिटीज़ को मैनेज करने के लिए कई उपाय अपना सकते हैं। गर्भधारण पूर्व डॉक्टर से नियमित परामर्श लें व बताए गए सभी नियमों का पालन करें जैसे:
- अपने ब्लड शुगर लेवल की नियमित जाँच करवाएं जिससे यह सुनिश्चित हो की आप पूरी तरह स्वस्थ हैं।
- सही समय पर सही मात्रा में स्वस्थ भोजन या हेल्दी डाइट लें। अपने डॉक्टर या डाइटीशीयन द्वारा बताए गए डाइट प्लान को फॉलो करें।
- सक्रीय यानि ऐक्टिव रहें। नियमित फिज़िकल ऐक्टिविटीज़ पर ध्यान दें जैसे तेज चलना व व्यायाम आपके शुगर लेवल को कंट्रोल रखता है। यह साथ ही आपको इंसुलिन सेन्सिटिव भी बनाता है। आपके लिए कौनसी शारीरिक गतिविधि सही है और किस से आपको बचना है, इसके बारे में डॉक्टर से परामर्श लें।
- बच्चे की ग्रोथ की नियमित मोनिटरिंग: आपका डॉक्टर आपके बच्चे की वृद्धि और विकास की नियमित जाँच करेगा।
- यदि डाइट और फिज़िकल ऐक्टिविटी आपकी रक्त शर्करा को सही नहीं रख पाती तो डॉक्टर आपको इंसुलिन, मेटफॉर्मिन या अन्य दवा दे सकता है।
गर्भकालीन/गर्भावस्था मधुमेह में किस आहार का सेवन करे?
जेस्टेशनल डाईबिटीज़ में हेल्दी और कम चीनी वाला खाना खाएं। अपने डॉक्टर से बात कर के आपके शरीर के लिए आवश्यक पोषण के अनुसार एक डाइट प्लान तैयार करें। साथ ही मधुमेह वाले किसी व्यक्ति के लिए बनाई गई भोजन योजना या डाइट प्लान का ज़रूर पालन करें:
- शुगरी स्नैक्स जैसे कुकीज़, कैंडी और आइसक्रीम के स्थान पर नेचुरल शुगर फूड जैसे फल, गाजर, किशमिश आदि का सेवन करें।
- सब्जियां और साबुत अनाज सही पोर्शन में खाएं।
- हर दिन निर्धारित समय पर दो या तीन स्नैक्स के साथ तीन छोटे भोजन या मील लें।
- अपनी दैनिक कैलोरी का 40% कार्ब्स से और 20% प्रोटीन से प्राप्त करें। यह कॉम्प्लेक्स और हाई-फाइबर कार्ब्स हो जिसमें वसा 25% से 40% के बीच हो।
- एक दिन में 20-35 ग्राम फाइबर ज़रूर लें। इसके लिए अपने खाने में साबुत अनाज (whole grain) की ब्रेड, अनाज व पास्ता, ब्राउन राइस, जई का दलिया, सब्जियां और फल शामिल करें।
- दैनिक कैलोरी में 40% से कम वसा अपने रोज के खाने में शामिल रखें। अगर आप सचूरेटेड वसा खा रहें हैं तो उसकी मात्रा 10% से कम होनी चाहिए।
- पर्याप्त विटामिन और खनिज से भरपुर भोजन करें। अगर आपको सप्लिमेंट्स की ज़रूरत है तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
- अगर आपको मॉर्निंग सिकनेस है तो छोटे-छोटे स्नैक्स खाएं। बिस्तर से उठने से पहले क्रेकर्स, अनाज, या प्रेट्ज़ेल लें। दिन में छोटे भोजन करें और वसायुक्त, तला हुआ और चिकना खाना खाने से बचें।
यदि आप इंसुलिन लेते हैं, तो लो ब्लड शुगर मैनेज करने के लिए तैयारी रखें। उलटी करने से आपका ग्लूकोज स्तर गिर सकता है इसलिए अपने चिकित्सक से बात करें कि ऐसी स्थिति से कैसे निपटना हैं।
शिशु को प्रेगनेंसी में शुगर से होने वाले नुकसान
गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डाईबिटीज़ को अगर नियंत्रित नहीं किया जाता तो वो शुगर लेवेल्स को बढ़ा देती है। यह उच्च रक्त शर्करा आपके और आपके बच्चे दोनों के लिए अनेक समस्याएँ पैदा कर सकती है, जिसमें प्रसव के लिए सर्जरी (सी-सेक्शन) की ज़रूरत की संभावना बढ़ जाती है।
जेस्टेशनल डाईबिटीज़ के दौरान आपके बच्चे को कई तरह की जटिलताएं हो सकती है जैसे:
- जन्म के दौरान शिशु का अत्यधिक वज़न – यदि आपका रक्त शर्करा का स्तर मानक सीमा से अधिक है, तो इससे आपके शिशु का वज़न व आकार बढ़ सकता है। कई बार शिशु का वज़न 9 पाउंड या उससे अधिक हो सकता है। ऐसे में उनके बर्थ केनाल में फँसने, चोट लगने की संभावना के साथ सी-सेक्शन की आवश्यकता होती है।
- समय-पूर्व प्रसव (Preterm Birth) – हाई शुगर लेवल होने पर समय से पूर्व प्रसव या early labor की संभावना बढ़ जाती है। कई बार डॉक्टर खुद शिशु के आकार के बढ़ने के संभावना के चलते समय-पूर्व प्रसव का परामर्श देते हैं।
- सांस लेने में कठिनाई – जल्दी पैदा होने वाले शिशुओं को श्वसन डिस्ट्रेस सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है जिसमें उनको साँस लेने में मुश्किल होती है।
- निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया) – कभी-कभी शिशुओं में जन्म के तुरंत बाद निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया) हो जाता है। बार-बार हाइपोग्लाइसीमिया होने से बच्चे को दौरे पड़ सकते हैं। इसके लिए तुरंत उसे ग्लूकोस चढ़ाया जाता है जिससे उसके शुगर लेवल को नॉर्मल किया जा सके।
शिशु को भविष्य में मोटापा और टाइप 2 मधुमेह की संभावना – ऐसे शिशुओं को जीवन में बाद में मोटापे और टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है।
Still Birth – यदि गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डाईबिटीज़ का उपचार नहीं किया जाता तो इस के परिणामस्वरूप जन्म से पहले या जन्म के तुरंत बाद बच्चे की मृत्यु हो सकती है।
माँ को को प्रेगनेंसी में शुगर से होने वाले नुकसान
शिशु के अतिरिक्त जेस्टेशनल डाईबिटीज़ माँ के लिए भी कई जटिलताएं पैदा करता है जो उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं। माँ को को प्रेगनेंसी में शुगर से होने वाले नुकसान हैं:
उच्च रक्तचाप और प्रीक्लेम्पसिया – गर्भकालीन मधुमेह आपके उच्च रक्तचाप के साथ-साथ प्रीक्लेम्पसिया के जोखिम को बढ़ाता है। यह एक ऐसी अवस्था है जो गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप और अन्य लक्षणों का कारण बनती है जिससे माँ व बच्चे दोनों के जीवन को खतरा हो सकता है।
सर्जिकल डिलीवरी (सी-सेक्शन) होना – यदि आपको गर्भावधि मधुमेह है तो आपको सी-सेक्शन होने की अधिक संभावना है।
भविष्य में मधुमेह होने की संभावना – यदि आपको गर्भावधि मधुमेह है, तो भविष्य में गर्भावस्था के दौरान आपको इसके दोबारा होने की संभावना अधिक होती है। साथ ही समय के साथ, आपको टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
और पढ़े: मधुमेह के लिए घरेलु उपचार
डॉक्टर का कब दिखाएं ?
कोशिश करें कि प्रेग्नन्सी के पहले ही आप डॉक्टर से परामर्श लें। वह आपके जेस्टेशनल डाईबिटीज़ के रिस्क फ़ैक्टर्स के साथ आपके समग्र स्वास्थ्य को सुनिश्चित करेगा जिससे भविष्य में आपको जेस्टेशनल डाईबिटीज़ होने की संभावना कम हो जाए। गर्भधारण के बाद वो गर्भावधि मधुमेह का पता करने के लिए आपके शुगर लेवल की जाँच करेगा।
यदि आपको गर्भावधि मधुमेह हो जाता हैं, तो आपको अधिक बार चेकअप की आवश्यकता हो सकती है। गर्भावस्था के आखिरी तीन महीनों के दौरान आपका डॉक्टर आपको कई बार जाँच के लिए बोल सकता है जिससे शुगर लेवल को मॉनिटर करने के साथ ही माँ व बच्चे के स्वास्थ्य की देखभाल की जा सके।
निष्कर्ष
जेस्टेशनल डाईबिटीज़ में शरीर में इंसुलिन रेजिसटेन्स के बढ़ जाने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। इस अवस्था में माँ व शिशु दोनों पर इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं। कई गंभीर परिस्थितियों में शिशु की मृत्यु तक हो सकती है। इसी कारण गर्भावस्था के दौरान अपने शुगर लेवल की नियमित जाँच करवाएं जिससे शिशु व माँ का अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जा सके। अच्छे खाने व शारीरिक गतिविधियों से शुगर लेवल्स को नियंत्रित किया जा सकता है इसलिए डॉक्टर से एक हेल्दी डाइट प्लान अवश्य लें। अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखें और यदि आप जेस्टेशनल डाईबिटीज़ के रिस्क पर हैं तो शुगर लेवल्स को नियमित मॉनीटर करें। अच्छा खान-पान व ऐक्टिव लाइफ इसकी संभावनाओं को कम कर सकती है। जिन महिलाओं को जेस्टेशनल डाईबिटीज़ हुआ हो उन्हें भविष्य में टाइप 2 डाईबिटीज़ की संभावना बढ़ जाती है इसलिए प्रसव के बाद भी अपने स्वास्थ्य की देखभाल करते रहें।
और पढ़े: डायबिटीज का होम्योपैथिक इलाज
FAQs:
प्रेगनेंसी में ब्लड शुगर लेवल कितना होना चाहिए?
अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन के अनुसार गर्भवती महिलाओं में निम्नलिखित शुगर लेवेल्स को सामान्य माना जाता है:
भोजन से पहले: 95 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
भोजन के एक घंटे बाद: 140 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
भोजन के दो घंटे बाद: 120 मिलीग्राम/डीएल या उससे कम
गर्भावस्था में डायबिटीज होने पर क्या खाएं?
भरपूर फल और सब्जियां
लीन प्रोटीन और हेल्दी फैट
साबुत अनाज ब्रेड, अनाज, पास्ता, और चावल, साथ ही स्टार्च वाली सब्जियां, जैसे मकई और मटर
शीतल पेय, फलों के रस और पेस्ट्री जैसे चीनीयुक्त पदार्थों के सेवन से बचें।
शुगरी स्नैक्स जैसे कुकीज़, कैंडी और आइसक्रीम के स्थान पर नेचुरल शुगर फूड जैसे फल, गाजर, किशमिश आदि का सेवन करें।
सब्जियां और साबुत अनाज सही पोर्शन में खाएं।
हर दिन निर्धारित समय पर दो या तीन स्नैक्स के साथ तीन छोटे भोजन या मील लें।
अपनी दैनिक कैलोरी का 40% कार्ब्स से और 20% प्रोटीन से प्राप्त करें। यह कॉम्प्लेक्स और हाई-फाइबर कार्ब्स हो जिसमें वसा 25% से 40% के बीच हो।
एक दिन में 20-35 ग्राम फाइबर ज़रूर लें। इसके लिए अपने खाने में साबुत अनाज (whole grain) की ब्रेड, अनाज व पास्ता, ब्राउन राइस, जई का दलिया, सब्जियां और फल शामिल करें।
दैनिक कैलोरी में 40% से कम वसा अपने रोज के खाने में शामिल रखें। अगर आप सचूरेटेड वसा खा रहें हैं तो उसकी मात्रा 10% से कम होनी चाहिए।
पर्याप्त विटामिन और खनिज से भरपुर भोजन करें। अगर आपको सप्लिमेंट्स की ज़रूरत है तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
अगर आपको मॉर्निंग सिकनेस है तो छोटे-छोटे स्नैक्स खाएं। बिस्तर से उठने से पहले क्रेकर्स, अनाज, या प्रेट्ज़ेल लें। दिन में छोटे भोजन करें और वसायुक्त, तला हुआ और चिकना खाना खाने से बचें।
गर्भकालीन मधुमेह बच्चे को कैसे प्रभावित करता है?
जेस्टेशनल डाईबिटीज़ के दौरान आपके बच्चे को कई तरह की जटिलताएं हो सकती है जैसे:
जन्म के दौरान शिशु का अत्यधिक वज़न। यदि आपका रक्त शर्करा का स्तर मानक सीमा से अधिक है, तो इससे आपके शिशु का वज़न व आकार बढ़ सकता है। कई बार शिशु का वज़न 9 पाउंड या उससे अधिक हो सकता है। ऐसे में उनके बर्थ केनाल में फँसने, चोट लगने की संभावना के साथ सी-सेक्शन की आवश्यकता होती है।
समय-पूर्व प्रसव (Preterm Birth)- हाई शुगर लेवल होने पर समय से पूर्व प्रसव या early labor की संभावना बढ़ जाती है। कई बार डॉक्टर खुद शिशु के आकार के बढ़ने के संभावना के चलते समय-पूर्व प्रसव का परामर्श देते हैं।
सांस लेने में कठिनाई – जल्दी पैदा होने वाले शिशुओं को श्वसन डिस्ट्रेस सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है जिसमें उनको साँस लेने में मुश्किल होती है।
निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया) – कभी-कभी शिशुओं में जन्म के तुरंत बाद निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया) हो जाता है। बार-बार हाइपोग्लाइसीमिया होने से बच्चे को दौरे पड़ सकते हैं। इसके लिए तुरंत उसे ग्लूकोस चढ़ाया जाता है जिससे उसके शुगर लेवल को नॉर्मल किया जा सके।
शिशु को भविष्य में मोटापा और टाइप 2 मधुमेह की संभावना – ऐसे शिशुओं को जीवन में बाद में मोटापे और टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है।
Still Birth – यदि गर्भकालीन मधुमेह या जेस्टेशनल डाईबिटीज़ का उपचार नहीं किया जाता तो इस के परिणामस्वरूप जन्म से पहले या जन्म के तुरंत बाद बच्चे की मृत्यु हो सकती है।
प्रेगनेंसी में शुगर क्यों हो जाता है?
गर्भावस्था के बाद के समय में सभी गर्भवती महिलाओं में कुछ इंसुलिन रेज़िसटेन्स होता है। हालांकि ज़्यादातर गर्भवती महिलाएं इंसुलिन प्रतिरोध को दूर करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन कर सकती हैं, लेकिन कुछ महिलाओं में इसका आवश्यक उत्पादन नहीं हो पाता। इन महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह या जेस्टेशनल डाईबिटीज़ हो जाता है।
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