इन्सुलिन से छुटकारा पाएं, इन आसान तरीकों को अपनाएं 

Medically Reviewed By: DR. HARDIK BAMBHANIA, MBBS, MD , 8 Years of Experience मार्च 15, 2024

डायबिटीज़ होने पर जीवन मुश्किल हो सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें शुगर लेवल कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। भले ही डायबिटीज़ में कई लोगों के लिए इंसुलिन जरूरी है, लेकिन कुछ तरीके अपनाकर इंसुलिन पर निर्भरता कम की जा सकती है और सेहत को भी बेहतर बनाया जा सकता है। आज हम आपको , ऐसे कई तरीके बताएंगे जिनसे आप अपनी आदतें बदलकर, खाने में बदलाव करके और कुछ इलाज करके अपने शुगर को कंट्रोल कर सकते हैं और इन्सुलिन से छुटकारा पा सकते है। साथ ही ऐसे तरीके बताएंगे जिससे आपको कम इंसुलिन लेना पड़े या लेना ही न पड़े।

इंसुलिन क्या है और ये कैसे काम करता है?

इंसुलिन क्या है और ये कैसे काम करता है?

इंसुलिन शरीर में एक जरूरी हॉर्मोन है। ये पेट के पीछे स्थित अग्नाशय (पेनक्रियास) नाम की ग्रंथि से बनता है। ये खून में शुगर का लेवल कंट्रोल करने में मदद करता है और शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा के लिए शुगर इस्तेमाल करने में भी मदद करता है। जब आप खाना खाते हैं, खासकर मीठी चीजें, तो आपका पेट इन्हें तोड़कर छोटे-छोटे शुगर के टुकड़ों में बदल देता है, जो खून में मिल जाते हैं। खाने के बाद ब्लड शुगर लेवल बढ़ने पर अग्नाशय इसे पहचान लेता है और इंसुलिन को खून में छोड़ता है। आइए जानते हैं कि इंसुलिन कैसे काम करता है-

  1. शुगर को रेग्युलेट करना: जब आप खाना खाते हैं, खासकर मीठी चीजें, तो आपका पाचन तंत्र इन्हें तोड़कर ग्लूकोज़ (शुगर) बनाता है, जो खून में मिल जाता है। खाने के बाद ब्लड शुगर लेवल बढ़ने पर अग्नाशय इसे पहचान लेता है और इंसुलिन को खून में छोड़ता है।
  2. कोशिकाओं में शुगर लेना: इंसुलिन एक “चाबी” की तरह काम करता है, जो कोशिकाओं का दरवाजा खोल देता है। इससे ग्लूकोज़ कोशिकाओं में जाकर ऊर्जा बनाने के काम आता है। इंसुलिन कोशिका झिल्ली (मेम्ब्रेन) पर मौजूद रिसेप्टर्स से जुड़ता है, जिससे कोशिका को संकेत मिलता है कि वो ग्लूकोज़ लेने के लिए चैनल खोले।
  3. ऊर्जा का भंडार: कोशिकाओं में ग्लूकोज़ ले जाने के अलावा, इंसुलिन जरूरत से ज्यादा ग्लूकोज़ को ग्लाइकोजन में बदलने में मदद करता है। ग्लाइकोजन शुगर का एक भंडार होता है, जो लीवर और मांसपेशियों में जमा होता है। जब खाने के बीच या ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है, तब शरीर इस जमे हुए ग्लाइकोजन को तोड़कर वापस ग्लूकोज़ बना लेता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल स्थिर रहता है।
  4. शुगर बनाने को रोकना: इंसुलिन लीवर को नया ग्लूकोज़ बनाने से रोकता है। इससे खून में शुगर ज्यादा नहीं बन पाता और शुगर का लेवल संतुलित रहता है। इस तरह, इंसुलिन ब्लड शुगर को एक सीमा में रखता है, जो शरीर के अंगों को ठीक से काम करने के लिए जरूरी होता है।
  5. प्रोटीन और फैट का मेटाबॉलिज्म: इंसुलिन प्रोटीन और फैट के मेटाबॉलिज्म (पदार्थों के रूप बदलने की प्रक्रिया) को भी कंट्रोल करता है। ये कोशिकाओं में अमीनो एसिड (प्रोटीन के निर्माण खंड) ले जाने में मदद करता है और प्रोटीन के टूटने को रोकता है। साथ ही, इंसुलिन शरीर में फैट जमा करने और जमे हुए फैट के टूटने को रोकने का काम करता है।

इस तरह, इंसुलिन शरीर के मेटाबॉलिज्म को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाता है। ये खून में शुगर का लेवल स्थिर रखता है और कोशिकाओं को काम करने के लिए जरूरी ऊर्जा देता है। डायबिटीज़ में या तो अग्नाशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता (टाइप 1 डायबिटीज़) या फिर शरीर इंसुलिन के असर को कम कर देता है (टाइप 2 डायबिटीज़)। इससे खून में शुगर का लेवल बढ़ जाता है और कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। डायबिटीज़ के इलाज में अक्सर इंसुलिन थेरेपी, खाने में बदलाव, व्यायाम और शुगर की दवाइयां शामिल होती हैं, ताकि शुगर लेवल को कंट्रोल किया जा सके और परेशानियों का खतरा कम हो सके।

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डायबिटीज में इन्सुलिन से छुटकारा कैसे पाएं?

डायबिटीज में इन्सुलिन से छुटकारा कैसे पाएं?

इंसुलिन का इस्तेमाल कम करने के उपायों को समझने से पहले, यह जानना जरूरी है कि डायबिटीज़ में इंसुलिन की क्या भूमिका होती है। जैसा हमने ऊपर आपको बताया कि डायबिटीज़ में शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता (टाइप 1 डायबिटीज़) या फिर इंसुलिन के असर को कम कर देता है (टाइप 2 डायबिटीज़)। इससे खून में शुगर का लेवल बढ़ जाता है। इसलिए कई बार डॉक्टर इंसुलिन लेने की सलाह देते हैं। अब अगर शुगर मरीज इंसुलिन का इस्तेमाल कम करना चाहते हैं या इन्सुलिन से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो उन्हें नीचे दिए गए तरीकों को समझना होगा।

शुगर कंट्रोल करने के लिए आदतों में बदलाव-

  1. नियमित व्यायाम: शारीरिक गतिविधि मांसपेशियों में शुगर लेने की क्षमता और इंसुलिन के असर को बढ़ाने में मदद करती है। सप्ताह में कम से कम 150 मिनट मीडियम इंटेंसिटी वाले एक्सरसाइज, जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना या तैराकी, करने का लक्ष्य रखें।
  2. हेल्दी डाइट: साबुत अनाज, फल, सब्जियां, कम चर्बी वाला प्रोटीन और हेल्दी फैट से भरपूर संतुलित आहार खाने से खून में शुगर का लेवल स्थिर रहता है और इंसुलिन रेसिस्टेंस कम होता है। मैदे से बनी चीजें, मीठे खाने और प्रोसेस्ड स्नैक्स कम खाएं।
  3. हेल्दी वजन रखें: डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए डाइट और व्यायाम से स्वस्थ वजन बनाए रखना जरूरी है। थोड़ा सा वजन कम करने से भी इंसुलिन के असर और शुगर कंट्रोल में सुधार हो सकता है।
  4. तनाव कम करना: लगातार तनाव शरीर में इंसुलिन के असर को कम कर सकता है और शुगर का लेवल बढ़ा सकता है। तनाव कम करने के लिए माइंडफुलनेस, मेडिटेशन, गहरी सांस लेने की एक्सरसाइज या योग जैसे तरीके अपनाएं।
  5. पर्याप्त नींद: अच्छी और पूरी नींद लेना शरीर के मेटाबॉलिज्म और शुगर कंट्रोल के लिए जरूरी है। रोजाना 7-9 घंटे की नींद लेने का लक्ष्य रखें। ये इंसुलिन के असर और हॉर्मोन रेगुलेशन को बेहतर बनाता है।

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डायबिटीज़ में इन्सुलिन से छुटकारा के लिए डाइट में बदलाव-

डायबिटीज़ में इन्सुलिन से छुटकारा के लिए डाइट में बदलाव-

भले ही सिर्फ खाने से ही डायबिटीज़ में इंसुलिन की पूरी तरह जरूरत खत्म न हो पाए, लेकिन सेहतमंद खाने की आदतें अपनाकर आप शुगर लेवल को कंट्रोल कर सकते हैं और हो सकता है कि आपको कम इंसुलिन लेना पड़े। आइए देखें, डायबिटीज़ को मैनेज करने और शुगर लेवल को सही रखने के लिए खाने में क्या बदलाव कर सकते हैं:

  1. साबुत चीजें खाएं: ज्यादा से ज्यादा फल, सब्जियां, साबुत अनाज, कम चर्बी वाला प्रोटीन और हेल्दी फैट खाएं। ये चीजें पोषण से भरपूर होती हैं और शरीर को जरूरी विटामिन, मिनरल, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स देती हैं।
  2. मैदे से बनी चीजें कम खाएं: मैदे से बनी चीजें जैसे सफेद ब्रेड, सफेद चावल, मीठे सीरियल, पेस्ट्री और मीठे पेय कम से कम खाएं। ये चीजें खून में शुगर का लेवल अचानक बढ़ा देती हैं और इंसुलिन रेसिस्टेंस को बढ़ा सकती हैं।
  3. जटिल कार्ब्स चुनें: ऐसे कार्ब्स खाएं जिनमें फाइबर ज्यादा हो और ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम हो, जैसे साबुत अनाज (ब्राउन राइस, क्विनोआ, ओट्स), दालें (छोले, मसूर, चना) और बिना स्टार्च वाली सब्जियां (हरी पत्तेदार सब्जियां, ब्रोकली, फूलगोभी)।
  4. फलों का सेवन सीमित मात्रा में करें: हालांकि फलों में प्राकृतिक शुगर होती है, लेकिन इनमें फाइबर, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं। केला, अंगूर और आम जैसे ज्यादा मीठे फलों को कम खाएं और उनकी जगह कम मीठे फल जैसे बेरीज, सेब और खट्टे फल चुनें।
  5. कम चर्बी वाला प्रोटीन खाएं: खाने में चिकन (बिना चर्बी वाला), मछली, टोफू, टेम्पेह, दालें और कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स शामिल करें। प्रोटीन खून में शुगर का लेवल स्थिर रखता है और पेट भरा हुआ महसूस कराता है।
  6. हेल्दी फैट लें: अपने आहार में हेल्दी फैट शामिल करें, जैसे एवोकाडो, मेवे, बीज, जैतून का तेल और फैटी फिश (सामन, मैकेरल, सार्डिन)। हेल्दी फैट शरीर में कार्ब्स को धीरे-धीरे सोखने में मदद करते हैं और दिल को स्वस्थ रखते हैं।
  7. खाने की मात्रा का ध्यान रखें: कितना खा रहे हैं, इस पर ध्यान दें और ज्यादा न खाएं। ज्यादा कैलोरी खाने से वजन बढ़ सकता है और इंसुलिन रेसिस्टेंस खराब हो सकता है। खाने की मात्रा को कंट्रोल करने के लिए मापने के कप, फूड स्केल या आंख से अंदाजा लगाने का तरीका इस्तेमाल करें।
  8. खाने का समय और मात्रा तय करें: दिनभर में पूरे दिन समान मात्रा में कार्ब्स खाएं और खाने का समय तय करके रखें। इससे शुगर लेवल स्थिर रहता है। खाना छोड़ना या लंबे समय तक भूखे रहना नुकसानदायक है, इससे शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव आ सकता है।
  9. पानी पिएं: पूरे दिन भर पानी पीकर हाइड्रेटेड रहें। मीठे पेय कम से कम पिएं और उनकी जगह पानी, हर्बल चाय या स्पार्कलिंग वाटर पिएं।
  10. खून में शुगर का लेवल चेक करते रहें: नियमित रूप से अपना ब्लड शुगर लेवल जांचें। इससे पता चलेगा कि आपकी खाने की आदतों में किए गए बदलावों का असर कैसा हो रहा है और जरूरत के हिसाब से आप अपने खाने में और बदलाव कर सकते हैं। किसी डायटिशियन या डॉक्टर से मिलकर अपने लिए खाने का प्लान बनवाएं जो आपकी उम्र, वजन, कितना एक्टिव रहते हैं और आपकी बाकि की बीमारियों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया हो।

हालांकि ध्यान रखें कि हर किसी के लिए खाने की सलाह अलग-अलग हो सकती है। ये आपकी उम्र, वजन, कितना एक्टिव रहते हैं और आपकी बाकि की बीमारियों पर निर्भर करती है। डॉक्टर या डायटिशियन से सलाह लें, वो आपको डायबिटीज़ को मैनेज करने और सेहतमंद रहने के लिए सही खाने की आदतें अपनाने में मदद करेंगे। सिर्फ खाना ही नहीं, बल्कि इंसुलिन, दवाईयां, व्यायाम और तनाव कम करने के तरीके भी डायबिटीज़ को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

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इन्सुलिन से छुटकारा पाने के लिए डायबिटीज के वैकल्पिक इलाज-

डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी इलाज खुद से नहीं करना चाहिए। ये इलाज दवाइयों के साथ मिलकर ही फायदेमंद हो सकते हैं। आइए देखें कुछ इलाज जो शुगर को कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं:

  1. आयुर्वेदिक चीजें: कुछ जड़ी-बूटियां और आयुर्वेदिक चीजें खून में शुगर का लेवल कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं, जैसे:
    • करेला (Bitter Melon): करेले में ऐसे तत्व होते हैं जो इंसुलिन की तरह काम करते हैं और शुगर लेवल कम करने में मदद करते हैं। इसे सब्जी के रूप में खाया जा सकता है या सप्लीमेंट के रूप में लिया जा सकता है।
    • मेथी (Fenugreek): मेथी के दाने कुछ रिसर्च में इंसुलिन के असर को बढ़ाने और शुगर लेवल कम करने में कारगर पाए गए हैं। इन्हें खाने में मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, चाय में उबाला जा सकता है या सप्लीमेंट के रूप में लिया जा सकता है।
    • जिनसेंग (Ginseng): कोरियन रेड जिनसेंग और अमेरिकन जिनसेंग पर रिसर्च की जा रही है कि ये डायबिटीज़ में इंसुलिन के असर को बढ़ाने और शुगर कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, इनके फायदों को पक्का करने के लिए और रिसर्च की जरूरत है।
  2. एक्यूपंक्चर (Acupuncture): एक्यूपंक्चर, चीन की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है, जिसमें शरीर के खास बिंदुओं पर पतली सुइयां चुभोई जाती हैं। डायबिटीज़ के इलाज में इसके फायदों पर रिसर्च की गई है। कुछ रिसर्च बताते हैं कि एक्यूपंक्चर से शुगर कंट्रोल बेहतर हो सकता है, इंसुलिन रेसिस्टेंस कम हो सकता है और डायबिटीज़ की वजह से होने वाली तंत्रिका संबंधी समस्याएं कम हो सकती हैं।
  3. मन और शरीर को शांत करने वाले इलाज (Mind-Body Therapies): योग, ताई ची और चीगोंग जैसे व्यायाम सांस लेने के अभ्यास और दिमाग को शांत करने के तरीकों को मिलाकर किए जाते हैं। इनसे तनाव कम होता है, राहत मिलती है और सेहत अच्छी रहती है। डायबिटीज़ वालों के लिए ये इलाज शुगर कंट्रोल बेहतर करने में, तनाव की वजह से होने वाली इंसुलिन रेसिस्टेंस कम करने में और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
  4. क्रोमियम सप्लीमेंट (Chromium Supplementation): क्रोमियम एक मिनरल है जो शरीर में शुगर के इस्तेमाल और इंसुलिन के असर में अहम भूमिका निभाता है। कुछ रिसर्च बताते हैं कि क्रोमियम सप्लीमेंट, खासकर जिन लोगों में क्रोमियम की कमी होती है, उनमें शुगर कंट्रोल बेहतर करने में मदद कर सकता है। हालांकि, इसके फायदे और सुरक्षा को पक्का करने के लिए और रिसर्च की जरूरत है।
  5. मैग्नीशियम सप्लीमेंट (Magnesium Supplementation): मैग्नीशियम भी एक मिनरल है जो शरीर में शुगर के इस्तेमाल और इंसुलिन के काम में अहम भूमिका निभाता है। रिसर्च बताते हैं कि मैग्नीशियम की कमी डायबिटीज़ वालों में इंसुलिन रेसिस्टेंस और शुगर कंट्रोल खराब होने से जुड़ी हो सकती है। कुछ मामलों में, मैग्नीशियम सप्लीमेंट लेकर इंसुलिन के असर को बढ़ाया जा सकता है और शुगर कंट्रोल बेहतर किया जा सकता है।
  6. प्रोबायोटिक्स: हाल के स्डटी से पता चलता है कि प्रोबायोटिक्स, जो कि दही, छाछ जैसी फर्मेंटेड चीजों और सप्लीमेंट्स में पाए जाने वाले फायदेमंद बैक्टीरिया होते हैं, डायबिटीज़ वालों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। ये हमारे पेट के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, सूजन कम करने और शरीर में शुगर के इस्तेमाल को सही रखने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, डायबिटीज़ के इलाज में इनके फायदों को पूरी तरह से समझने के लिए और रिसर्च की जरूरत है।

ये इलाज भले ही फायदेमंद लगें, लेकिन इन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेना चाहिए और ये दवाइयों का विकल्प नहीं हैं। कोई भी नया इलाज या सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लें, खासकर अगर आपको डायबिटीज़ है या आप पहले से ही कोई दवा ले रहे हैं। डॉक्टर की सलाह से ही डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए खान-पान में बदलाव, व्यायाम और दवाओं के साथ-साथ इन इलाजों को भी शामिल किया जा सकता है। इससे आपका शुगर लेवल कंट्रोल में रहेगा और आपकी सेहत अच्छी रहेगी।

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निष्कर्ष

भले ही कई लोगों के लिए इंसुलिन जरूरी है, लेकिन डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए और इंसुलिन पर निर्भरता कम करने के लिए कई और तरीके भी हैं। नियमित व्यायाम, अच्छा खाने-पीने अपनाकर और तनाव कम कर, मीठी चीजें कम खाएं, ज्यादा से ज्यादा फल, सब्जियां और साबुत अनाज खाकर साथ ही डॉक्टर की सलाह से आयुर्वेदिक, एक्यूपंक्चर या प्रोबायोटिक्स लेने से इंसुलिन का इस्तेमाल कम कर सकते हैं। याद रखें, छोटे-छोटे बदलाव भी डायबिटीज मैनेजमेंट में और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में बहुत मददगार हो सकते हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल 

आदतें बदलने से कितने समय में इंसुलिन की जरूरत कम होगी?

हर व्यक्ति अलग होता है, इसलिए इसमें लगने वाला समय भी अलग-अलग हो सकता है। ये इस बात पर निर्भर करता है कि डायबिटीज़ कितनी गंभीर है, आप कितनी अच्छी तरह से आदतों को अपना रहे हैं और आपका शरीर इलाज पर कैसा रिस्पॉन्स दे रहा है। इसलिए आदतों को अपनाने में धैर्य रखें।

इंसुलिन की मात्रा को कम करने के लिए क्या करें?

इंसुलिन की मात्रा कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी है। वो धीरे-धीरे मात्रा कम करेंगे और साथ ही आपका शुगर लेवल भी चेक करते रहेंगे। इससे शुगर लेवल बहुत कम होने (हाइपोग्लाइसीमिया) से बचा जा सकता है और शुगर को कंट्रोल में रखा जा सकता है। बिना डॉक्टर की सलाह के इंसुलिन कम करने से खून में शुगर का लेवल बहुत बढ़ सकता है (हाइपरग्लाइसीमिया) और डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (DKA) जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए इंसुलिन की मात्रा में किसी भी बदलाव से पहले डॉक्टर से जरूर बात करें।

क्या कोई इलाज हैं जिनसे इंसुलिन की जरूरत कम हो सकती है?

कुछ इलाज, जैसे एक्यूपंक्चर, आयुर्वेदिक दवाएं (जैसे करेला, मेथी), मन और शरीर को शांत करने वाले व्यायाम (जैसे योग, ताई ची), क्रोमियम और मैग्नीशियम की गोलियां और प्रोबायोटिक्स, पर रिसर्च की जा रही है कि क्या ये डायबिटीज़ को मैनेज करने में मदद कर सकते हैं। लेकिन इन्हें लेने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

कौन-सी आदतें अपनाने से इंसुलिन की जरूरत कम हो सकती है?

नियमित व्यायाम करना, सेहतमंद खाना खाना, जिसमें ज्यादा से ज्यादा फल, सब्जियां और साबुत अनाज शामिल हों और कम से कम मैदे से बनी चीजें खाई जाएं। वजन को कंट्रोल में रखना, तनाव कम करना, पूरी नींद लेना, धूम्रपान और ज्यादा शराब ना पीना जैसी आदतें शरीर की इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता को बढ़ाती हैं और शुगर लेवल को कंट्रोल में रखती हैं, जिससे हो सकता है कि इंसुलिन की कम जरूरत पड़े।

क्या डायबिटीज में पूरी तरह से इंसुलिन लेना बंद किया जा सकता है?

कुछ लोगों के लिए, खासकर टाइप 2 डायबिटीज़ में, अच्छी आदतें अपनाकर और दवाइयां लेकर इंसुलिन पर निर्भरता कम की जा सकती है, लेकिन पूरी तरह से बंद करना अक्सर मुश्किल होता है। टाइप 1 डायबिटीज़ में शरीर खुद इंसुलिन नहीं बना पाता, इसलिए इसमें आमतौर पर जिंदगी भर इंसुलिन लेना जरूरी होता है।

Last Updated on by Dr. Damanjit Duggal 

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